ना ही ग़मों का हिसाब ले,
ना खुशियों से हो वास्ता.
बेशर्त जीने की मुझे,
थोड़ी सी मोहलत चाहिए.........
जहाँ खुल के जी भर रो सकूं,
पहरा ना मेरी हंसी पे हो.
साँसों का जो न हिसाब ले,
मुझे ऐसी एक छत चाहिए...........
जो सारे मुझको जवाब दे,
जिन्हें जिंदगी रही ढूँढती.
वक्त के हाथों लिखा,
मुझे ऐसा एक ख़त चाहिए..........
मुझे गिराने दो के संभल सकूं,
उठूँ, उठके फ़िर से मैं चल सकूं
ऐ जिंदगी तेरी मुझे,
इतनी इनायत चाहिए..........
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1 comment:
Excellent, this proves time has not got enough friction to stop your ink flowing. Keep writing...........
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