कौन हो तुम जो कहीं नही हो,
फ़िर भी हर पल यहीं कहीं हो.
आंखों के आंसू मे हो तुम,
इन होठों की खिली हँसी हो.
क्यों लगता तुम सर्द हवा सी
आँचल मे लिपटे हो मेरे?
हर पल देखूं राह तुम्हारी
रात, दोपहर, सांझ,सवेरे.
क्यों लगता बनकर आओगे
तुम वह सुंदर धवल आइना
जिसमे जी भर निरख सकूँगी,
पाक, साफ वजूद मैं अपना
आना बनकर नया सवेरा,
मन के सूने वीराने में
कैद तुम्हे कर लूंगी फ़िर मैं,
इन पलकों के तहखाने मे
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