Tuesday, November 20, 2007

मूक गवाही......

शाम ढले फ़िर मेरे आँगन
हलकी सी पुरवाई
थोड़े पत्ते थोड़ी यादें
साथ लिए है आई

पीछे पीछे चलकर आई
यादों भरी पिटारी
दो बूँदें ढलकी बेबस सी
लिए मेरी लाचारी

धुंधली आंखों के आगे फ़िर
गुज़री एक कहानी
कुछ अपने, कुछ मन के हाथों
बीती एक मनमानी

हर आहट पे उठकर मेरा
दरवाजे तक जाना.
नाम तुम्हारा सुनकर मेरी
साँसों का थम जाना.

दबे हुए क़दमों से चलकर,
रात की एक परछाई.
दुआ सरीखी मेरी इन,
बिखरी यादों पे छाई.

शब्द हो गए धुंधले ,
जाने फ़ैली कैसे स्याही.
भीगे पन्ने, गीले मन की
दे गए मूक गवाही.............

2 comments:

Ashish said...

हर आहट पे उठकर मेरा
दरवाजे तक जाना.
नाम तुम्हारा सुनकर मेरी
साँसों का थम जाना.

amazing lines with amazing flow.. keep it up!!

शशि "सागर" said...

शब्द हो गए धुंधले ,
जाने फ़ैली कैसे स्याही.
भीगे पन्ने, गीले मन की
दे गए मूक गवाही.............

bade hee khoobsurat ehsas hain...